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कोलन और रेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग

कोलन और रेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग

जब डॉक्टर कैंसर या कोई भी असामान्य ग्रोथ (Growth) — जिसे पॉलीप्स (polyps) कहते हैं — के लक्षणों के लिए कोलन और रेक्टम की जाँच करते हैं, जो भविष्य में कैंसर बन सकता है, ऐसे एक परीक्षण को कोलन और रेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग कहते हैं। यह उन लोगों में किया जा -ता है जिन कभी भी कोई लक्षण नहीं दिखे है या ऐसा कोई कारण नहीं है सोचने के लिए कि उन्हें कैंसर है या हो सकता है। इस परीक्षण करवाने का लक्ष्य यह है कि पॉलीप्स को कैंसर में बदल जाने या कैंसर होने से पहले ही निकाल दिया जाए, ताकि कैंसर बढ़ने, फैलने, या और गम्भीर समस्याओं का कारण बनने से पहले ही खोज लिया लिया जाए।

बृहदान्त्र और मलाशय पाचन तंत्र (आकृति) का अंतिम हिस्सा में होते हैं । जब डॉक्टर कोलन और रेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग के बारे में बात करते हैं, तो वे “कोलोरेक्टल” शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यह “बृहदान्त्र और मलाशय” कहने का एक छोटा तरीका है। सिर्फ कोलोन कैंसर स्क्रीनिंग भी कहते है।

अध्ययनों से पता चला है कि पेट के कैंसर की जांच करने से पेट के कैंसर से मृत्यु की संभावना कम हो जाती है। कई अलग-अलग प्रकार के स्क्रीनिंग टेस्ट हैं जो ऐसी जांच कर सकते हैं।

  • निमनिलिखित अलग-अलग स्क्रीनिंग टेस्ट है:

    • कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) – कोलोनोस्कोपी डॉक्टर को पूरे बृहदान्त्र के अंदर सीधे देखने का एक तरीक़ा है। इससे पहले कि आप एक कोलोनोस्कोपी करवाने  जाते हैं, आपको अपने बृहदान्त्र को साफ करना होगा। आप घर पर एक विशेष तरल पीते हैं जो कई घंटों तक पानी जैसे दस्त करवाता है। परीक्षण के दिन, आपको विश्रान्ति बनाने के लिए दवा मिलती है। फिर एक डॉक्टर आपके गुदा में एक पतली ट्यूब डालते हैं और इसे आपके बृहदान्त्र (आकृति) में आगे बढ़ाते  हैं। ट्यूब में एक छोटा कैमरा लगा होता है, जिससे डॉक्टर आपके कोलन के अंदर देख सकते हैं। ट्यूब के अंत में छोटे उपकरण भी होते हैं, इसलिए डॉक्टर अगर ऊतक या पॉलीप्स दिखायी देते हैं तो इनके टुकड़े निकाल सकते हैं। पॉलीप्स या ऊतक के टुकड़े हटा दिए जाने के बाद, उन्हें कैंसर की जाँच के लिए एक प्रयोगशाला में भेजा जाता है।

     

    •  इस परीक्षण के लाभ – कोलोनोस्कोपी में अधिकांश सबसे छोटे पॉलीप्स और लगभग सभी बड़े पॉलीप्स, और कैंसर पता लगा लिए जाते हैं। यदि पॉलीप्स पाये जाते हैं, तो पॉलीप्स को तुरंत हटाया जा सकता है। यह परीक्षण सबसे सटीक परिणाम देता है। यदि कोई अन्य स्क्रीनिंग परीक्षण पहले किया जाता है, और सकारात्मक परिणाम (असामान्य) जवाब में आता है, तो अनुवर्ती के लिए कोलोनोस्कोपी करनी पड़ती है। यदि आपने अपने पहले परीक्षण में कोलोनोस्कोपी की है, तो आपको शायद इसके तुरंत बाद दूसरे अनुवर्ती परीक्षण की आवश्यकता नहीं होगी।
    •  इस परीक्षण में कमियां – कोलोनोस्कोपी के कुछ जोखिम हैं। यह बृहदान्त्र के अंदर रक्तस्राव या चिरे का कारण बन सकती है, लेकिन यह केवल 1,000 लोगों में से 1 में होता है। इसके अलावा, परीक्षण करवाने के पहले, आंत्र को साफ करना कुछ लोगों के लिए एक नापसन्द कार्य हो सकता है। और तो और, आमतौर पर लोग परीक्षण के दौरान दी गयी हुई विश्रान्ति बनाने की दवा के कारण, कई लोग परीक्षण के बाद, दिनभर के लिए काम नहीं कर सकते हैं या कोई भी वाहन चला नहीं सकते हैं।

    कुछ स्थितियों में, एक डॉक्टर कुछ “कैप्सूल” कोलोनोस्कोपी कह सकता है। इस परीक्षण के लिए, आप एक विशेष कैप्सूल निगलते हैं जिसमें छोटे वायरलेस वीडियो कैमरा (Wireless Video Camera) होता है। यह तब किया जा सकता है यदि आपका डॉक्टर सामान्य कॉलोनोस्कोपी की प्रक्रिया के दौरान आपके सभी बृहदान्त्र को देखने में सफलता ना मिली हो।

    • सीटी कॉलोनोग्राफी (CT colonography) — जिसे वर्चुअल कॉलोनोस्कोपी (virtual colonoscopy) या सीटीसी (CTC) भी कहते हैं – सीटीसी एक विशेष एक्स-रे नामक “सी.टी. स्कैन” (CT scan) का उपयोग करके कैंसर और पॉलीप्स की तलाश करता है। अधिकांश सीटीसी परीक्षणों के लिए, तैयारी वैसी ही है जैसे कि कोलोनोस्कोपी के लिए ऊपर दर्शायी गयी हैं। 
    •  इस परीक्षण के लाभ – इस सीटी स्कैन से आपके कोलन को विश्रान्ति बनाने की दवा दवाओं की आवश्यकता के बिना पूरे बृहदान्त्र में पॉलीप्स और कैंसर का पता लगा सकते हैं।
    •  इस परीक्षण में कमियां – अगर डॉक्टरों को सीटीसी से पॉलीप्स या कैंसर का पता चलता है, तो आमतौर पर वे कोलोनोस्कोपी का परीक्षण भी करते हैं।

    सीटीसी कभी-कभी से कुछ ऐसे क्षेत्रों, जो स्वस्थ होते हैं, उन्हें असामान्य (या रोग्ग्र्स्त) दिखता है। मतलब, सीटीसी से आपको बिन-ज़रूरी परीक्षणों और प्रक्रियाओं करवानी पड़ती है जिनकी आपको कोई भी आवश्यकता ही नहीं होती। इसके अलावा, सीटीसी में आपको विकिरण के जोखिम का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर मामलों में, आपके आंत्र को साफ करने की तैयारी, बिलकुल कॉलोनोस्कोपी के वक़्त की जाने की तैयारी जैसी ही है। परीक्षण महंगा है, और कुछ बीमा कंपनियां स्क्रीनिंग के लिए इस परीक्षा को कवर नहीं करती हैं।

    • रक्त के लिए मल का परीक्षण – “स्टूल” (Stool) या ‘मल’, जो अंग्रेज़ी में मल त्याग करना के लिए समानार्थी शब्द है। आम तौर पर, आपके स्टूल के नमूनों में रक्त के लिए स्टूल की जाँच होती है। कैंसर और पॉलीप्स ब्लीड कर सकते हैं, और अगर वे स्टूल टेस्ट करने के समय के आसपास ब्लीड करते हैं, तो टेस्ट में खून दिखाई देता है। परीक्षण में रक्त की थोड़ी मात्रा भी दिख सकती है, जो आम तौर पर आप संभवतः अपने मल में नहीं देख सकते हैं। 

    अन्य कम गंभीर स्थिति भी मल में कम मात्रा में रक्त का कारण बन सकती है, जो इस परीक्षण में दिखाई देंगी। आपको अपने मल त्याग से एक छोटे नमूने एकत्र करने होंगे, जिसे आप अपने डॉक्टर से प्राप्त एक विशेष कंटेनर में डालेंगे। फिर आप परीक्षण के लिए कंटेनर को बाहर भेजने के निर्देशों का पालन करेंगे। 

    •  इस परीक्षण के लाभ – इस परीक्षण में बृहदान्त्र की सफाई या कोई प्रक्रिया शामिल नहीं है।
    •  इस परीक्षण में कमियां – अन्य स्क्रीनिंग परीक्षणों की तुलना में मल परीक्षणों में पॉलीप्स को पहचानने की संभावना बहुत कम होती है। ये परीक्षण अक्सर उन लोगों में भी असामान्य विवरण बताते हैं, जिन्हें कोई भी कैंसर नहीं होता है। यदि एक मल परीक्षण में कुछ असामान्य दिखाता है, तो डॉक्टर आमतौर पर तुरंत कोलोनोस्कोपी करते हैं।
    • सिग्मायोडोस्कोपी (Sigmoidoscopy) – 

    सिग्मायोडोस्कोपी कुछ मायनों में कोलोनोस्कोपी के काफ़ी समान है। 

    इन दोनो परकिशनो की विभिन्नता सिर्फ़ यह है कि सिग्मायोडोस्कोपी परीक्षण में केवल बृहदान्त्र के अंतिम भाग को देखते हैं, और कोलोनोस्कोपी में पूरे बृहदान्त्र को देखते हैं। इससे पहले कि आप सिग्मायोडोस्कोपी करें, आपको एनीमा (Enema) का उपयोग करके अपने बृहदान्त्र के निचले हिस्से को साफ करना पड़ता है। यह सफाई की प्रक्रिया, कोलोनोस्कोपी करवाने की प्रक्रिया जितनी कठिन या पूरी तरह से अप्रिय नहीं है। इस परीक्षण के लिए, आपके अंत्र को विश्रान्ति बनाने की दवाई लेने की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए आप ड्राइव कर सकते हैं और बाद में दिनभर काम भी कर सकते हैं।

    •  इस परीक्षण के लाभ – सिग्मायोडोस्कोपी से मलाशय और बृहदान्त्र के अंतिम भाग में पॉलीप्स और कैंसर का पता लगा सकते हैं। यदि पॉलीप्स पाए जाते हैं, तो उन्हें तुरंत हटाया भी जा सकता है।
    •  इस परीक्षण में कमियां – 10,000 में से 2 लोगों में, सिग्मायोडोस्कोपी बृहदान्त्र के अंदर चिरे पड़ सकती हैं। बृहदान्त्र के जिस भाग को इस परीक्षण में नहि देखा जाता, उसमें अगर पॉलीप्स या कैंसर है तो इस परीक्षण में पता नहीं चल सकता की पॉलीप्स या कैंसर है या नहीं (आकृति)। यदि डॉक्टर को सिग्मायोडोस्कोपी के दौरान पॉलीप्स या कैंसर का पता लगता है, तो वे आमतौर पर तुरंत कोलोनोस्कोपी करवाने की सलाह देते हैं।
    • स्टूल डीएनए टेस्ट (Stool DNA Test) – स्टूल डीएनए टेस्ट में कैंसर के आनुवांशिक मार्करों के साथ-साथ रक्त के संकेतों के लिए भी जाँच होती है। इस परीक्षण के लिए, आपको पूरे मल (मल त्याग) को इकट्ठा करने के लिए एक विशेष किट आपको मिलती है। फिर आपको इसे कैसे और कहां जाँच के लिए देनी है, यह आपके डॉक्टर के निर्देशों के अनुसार करें।
    •  इस परीक्षण के लाभ – इस परीक्षण में बृहदान्त्र की सफाई या कोई प्रक्रिया नहीं की जाती नहीं है। जब कैंसर मौजूद होता ही नहीं है, तो यह मल में रक्त परीक्षण के लिए जो मल परीक्षण होती है उसकी तुलना में असामान्य परिणाम होने की संभावना बहुत कम होती है। इसका मतलब यह है कि, इस परीक्षण के कारण आपको कोई अन्य या अधिक अनावश्यक कॉलोनोस्कोपी करवानी नहि पड़ती।
    • इस परीक्षण में कमियां – आपके एक पूरे मल के नमूने को इकट्ठा करना, और भेजने की प्रक्रिया आपके लिए थोड़ी अप्रिय हो सकती है। यदि डीएनए परीक्षण कुछ असामान्य दिखाता है, तो डॉक्टर आमतौर पर एक कोलोनोस्कोपी करवाने के सलाह देते हैं।

    ऐसा कोई भी रक्त परीक्षण नहीं है, जो ज्यादातर विशेषज्ञों के अनुसार स्क्रीनिंग में उपयोग करने और परिणाम के लिए पर्याप्त हो।

यह तय करने के लिए, अपने चिकित्सक के साथ मिलके तय करें, की कौनसे परीक्षण आपके लिए सबसे उचित है। कुछ डॉक्टर एक से अधिक स्क्रीनिंग परीक्षणों — (उदाहरण के लिए) जैसे की सिग्मोइडोस्कोपी परीक्षण और प्लस स्टूल परीक्षण को करने के लिए चुन सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की आप कौनसी स्क्रीनिंग करवा रहे हैं, क्यूँकि इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है — कि आप कोई तो परीक्षा करवा रहें हैं, आपकी सही और सम्पूर्ण जाँच करवाने के लिए!

  • डॉक्टर की सलाह यह होती है कि ज्यादातर लोगों को 50 साल की उम्र होने या उसके बाद, कोलन कैंसर की स्क्रीनिंग करवानी चाहिए। जिन लोगों को कोलोन कैंसर होने की संभावना या खतरा अधिक होता है, वे कभी-कभी छोटी उम्र में स्क्रीनिंग शुरू कर देते हैं। यह ऐसे लोग होते हैं, जिनके पारिवारों में ख़ास कोलोन कैंसर या कोलोन के अन्य प्रकार के रोग जैसे के “क्रोहन रोग” और “अल्सरेटिव कोलाइटिस” के बहुत ही ठोस सबूत या इतिहास में रह चुका हो। अधिकांश लोग जिनकी आयु 75 वर्ष के आसपास, या अधिकतम 85 वर्ष की आयु हो, उन्हें स्क्रीनिंग करवानी की अवशक्यकता नहीं होती है।

यह आपके कोलोन कैंसर होने की कितनी सम्भावना है, और आप कौनसी परिकक्षण करवा रहे हैं, उसपे निर्भर करता है। जिन लोगों को कोलोन कैंसर की अधिक संभावना होता है, उन्हें अक्सर अधिक बार परीक्षण करवाने की आवश्यकता होती है, और उनको कोलोनोस्कोपी करवानी चाहिए।

अधिकांश लोग जिनको कम संभावना या अधिक आशंका या जोखिम नहीं हैं, वे इनमें से कोई एक कार्यक्रम की योजना चुन सकते हैं:

  • हर 10 साल में कोलोनोस्कोपी
  • हर 5 साल में सीटी कॉलोनोग्राफी (सीटीसी) 
  • साल में एक बार मल में रक्त के लिए मल परीक्षण / स्टूल टेस्ट्स (Stool tests)
  • हर 5 से 10 साल में सिग्मायोडोस्कोपी 
  • हर 3 साल में स्टूल डीएनए (Stool DNA) परीक्षण (लेकिन परीक्षण को दोहराने के लिए डॉक्टर अभी तक सर्वश्रेष्ठ समय सीमा के लिए सुनिश्चित नहीं हैं)
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कोलोरेक्टल कैंसर के लिए स्क्रीनिंग

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कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) आमतौर पर बड़ी आंत (Colon) या मलाशय (Rectum) में मौजूद छोटे पोलिप्स (Polyps) से विकसित होता है, और शुरुआती बदलावों का पता लगाने में स्क्रीनिंग (Screening) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्क्रीनिंग के ज़रिए कैंसर या प्री-कैंसर पोलिप्स का पता लक्षणों के आने से पहले ही चल सकता है, जिससे सफल इलाज (Treatment) की संभावना बढ़ जाती है। जल्दी पता लगाने से कैंसर को बढ़ने से रोका जा सकता है और इलाज कम जटिल (Complex) हो सकता है।
 
भारत में बदलती जीवनशैली (Lifestyle) के कारण कोलोरेक्टल कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। खासकर 45 साल से अधिक उम्र वालों के लिए नियमित स्क्रीनिंग शुरुआती निदान (Diagnosis) और बचाव (Prevention) के लिए बेहद ज़रूरी है। इस लेख में हम कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग से जुड़ी मुख्य जानकारी, कौन से लोगों को स्क्रीनिंग करानी चाहिए, और उपलब्ध स्क्रीनिंग विधियों (Methods) पर चर्चा करेंगे।

स्क्रीनिंग (Screening) क्या है?

स्क्रीनिंग कैसे शुरुआती पहचान (Early Detection) में मदद करती है?

⦿ स्क्रीनिंग के माध्यम से कैंसर का पता उसके फैलने से पहले ही लगाया जा सकता है।

⦿ कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) जैसे परीक्षण न केवल पोलिप्स का पता लगाते हैं बल्कि उन्हें कैंसर बनने से पहले हटा भी सकते हैं।

⦿ स्क्रीनिंग के ज़रिए जल्दी पता लगाने से बेहतर इलाज विकल्प (Treatment Options) और जीवित रहने की दर (Survival Rate) बढ़ जाती है।

Common Cancers Where Screening is Essential

⦿ स्क्रीनिंग स्तन कैंसर (Breast Cancer), गर्भाशय ग्रीवा कैंसर (Cervical Cancer), फेफड़ों के कैंसर (Lung Cancer), और कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) के लिए बेहद ज़रूरी है।

⦿ कोलोरेक्टल कैंसर के मामले में, स्क्रीनिंग इसलिए और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पोलिप्स को हटाकर कैंसर को बढ़ने से रोक सकती है।

⦿ 45 साल से अधिक उम्र के लोगों और जिनके परिवार में कैंसर का इतिहास (Family History) है, उनके लिए नियमित स्क्रीनिंग की सलाह दी जाती है।

कोलोरेक्टल कैंसर के लिए स्क्रीनिंग

स्क्रीनिंग क्यों महत्वपूर्ण है?

जल्दी पहचान से बेहतर इलाज के परिणाम (Benefits of Early Detection for Better Treatment)

⦿ जल्दी पहचान से कम जटिल इलाज (Less Complex Treatment) के विकल्प मिलते हैं।

⦿ जब कैंसर का पता शुरुआती चरण (Early Stage) में चलता है, तो सर्जरी (Surgery) और इलाज ज्यादा प्रभावी होते हैं और रिकवरी (Recovery) भी तेज होती है।

⦿ जबकि देर से पहचाना गया कैंसर अक्सर अधिक जटिल इलाज की मांग करता है और इसकी जीवित रहने की दर (Survival Rate) कम होती है।

स्क्रीनिंग कैंसर को पोलिप्स (Polyps) की पहचान करके रोक सकती है

⦿ पोलिप्स छोटे, गैर-कैंसरयुक्त वृद्धि (Non-Cancerous Growths) होते हैं जो समय के साथ कैंसर में बदल सकते हैं।

⦿ कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) जैसे स्क्रीनिंग परीक्षण इन पोलिप्स का पता लगा सकते हैं और उन्हें कैंसर बनने से पहले हटा सकते हैं।

⦿ पोलिप्स को हटाकर, स्क्रीनिंग कैंसर के विकास को रोकने में मदद करती है।

शुरुआती पहचान के साथ जीवित रहने की दर में वृद्धि (Increased Survival Rate with Early Detection)

⦿ 90% से अधिक रोगियों का, जो शुरुआती चरण में कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) से पीड़ित होते हैं, सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।

⦿ जैसे-जैसे कैंसर बढ़ता है, जीवित रहने की दर काफी कम हो जाती है, इसलिए शुरुआती पहचान बेहद महत्वपूर्ण है।

⦿ नियमित स्क्रीनिंग से कैंसर को ऐसे चरण में पहचानने का अवसर मिलता है जब इलाज सबसे प्रभावी (Most Effective) होता है।

किसे स्क्रीनिंग करानी चाहिए?

45 वर्ष से अधिक उम्र के लोग (People Above 45 Years)

⦿ ज्यादातर दिशानिर्देशों (Guidelines) के अनुसार, 45 साल की उम्र से लोगों को कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग (Screening) करानी चाहिए।

⦿ उम्र के साथ कैंसर का खतरा (Risk) बढ़ता है, और स्क्रीनिंग से इसे शुरुआती चरण (Early Stage) में पहचाना जा सकता है, जब इलाज (Treatment) सबसे प्रभावी होता है।

जिनके परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर का इतिहास है (Family History of Colorectal Cancer)

⦿ यदि आपके परिवार के किसी सदस्य (जैसे माता-पिता या भाई-बहन) को कोलोरेक्टल कैंसर रहा है, तो आपके लिए इसका खतरा अधिक होता है।

⦿ ऐसे में आपको 45 साल से पहले स्क्रीनिंग शुरू करने और अधिक बार स्क्रीनिंग करवाने की आवश्यकता हो सकती है।

⦿ आनुवांशिक कारक (Genetic Factors) आपके कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं।

जिन्हें कुछ विशेष जोखिम हैं (Those with Specific Risk Factors)

⦿ मोटापा (Obesity), धूम्रपान (Smoking), और कम फाइबर वाले आहार (Low-Fiber Diet) जैसे जीवनशैली के कारक (Lifestyle Factors) कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं।

⦿ जो लोग प्रोसेस्ड (Processed) और रेड मीट (Red Meat) का अधिक सेवन करते हैं और फल व सब्जियां (Fruits and Vegetables) कम खाते हैं, उन्हें कैंसर का खतरा अधिक होता है।

⦿ धूम्रपान और व्यायाम की कमी कैंसर के विकास में और योगदान कर सकते हैं।

उच्च जोखिम वाले समूह (High-Risk Groups)

⦿ जिन लोगों को इंफ्लेमेटरी बाउल डिज़ीज़ (Inflammatory Bowel Disease – IBD) जैसे क्रोह्न्स डिज़ीज़ (Crohn’s Disease) या अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis) है, उनमें कैंसर का खतरा अधिक होता है।

⦿ अगर आपके परिवार में पोलिप्स (Polyps) का इतिहास है, तो आपके डॉक्टर आपको जल्दी और अधिक बार स्क्रीनिंग कराने की सलाह दे सकते हैं।

⦿ लिंच सिंड्रोम (Lynch Syndrome) जैसी आनुवांशिक स्थितियाँ भी कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती हैं, और इन्हें रोकथाम (Prevention) के लिए अधिक सक्रिय स्क्रीनिंग की आवश्यकता होती है।

कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग उम्र, पारिवारिक इतिहास, और जीवनशैली विकल्पों जैसे विशेष जोखिम कारकों वाले व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है। नीचे दी गई तालिका विभिन्न जोखिम समूहों, उन्हें स्क्रीनिंग कराने के कारणों, और स्क्रीनिंग शुरू करने की अनुशंसित उम्र को संक्षेप में प्रस्तुत करती है:
जोखिम समूह स्क्रीनिंग का कारण स्क्रीनिंग शुरू करने की आयु आवृत्ति
45 वर्ष से अधिक उम्र के लोग उम्र के साथ कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ता है 45 वर्ष हर 10 साल में (कोलोनोस्कोपि)
कोलोरेक्टल कैंसर का पारिवारिक इतिहास वाले लोग आनुवांशिक कारणों से कैंसर का जोखिम अधिक होता है 45 वर्ष से पहले (डॉक्टर की सलाह अनुसार) हर 5 साल में या अधिक बार
मोटापा, धूम्रपान, या कम फाइबर वाले आहार से जुड़े लोग आहारों के कारण कैंसर का जोखिम बढ़ता है 45 वर्ष हर 10 साल में (कोलोनोस्कोपि)
उच्च जोखिम वाले समूह (आधिकारिक, पॉलिसी का पारिवारिक इतिहास) पोलिप्स और अन्य स्थितियों के कारण कैंसर का खतरा अधिक है 45 वर्ष से पहले (डॉक्टर की सलाह अनुसार) हर 1-3 साल में (खबरें के अनुसार)

स्क्रीनिंग परीक्षण के प्रकार

फीकल ओकल्ट ब्लड टेस्ट (एफओबीटी - Fecal Occult Blood Test)

⦿ यह परीक्षण मल (Stool) में छिपे हुए (Occult) खून की जांच करता है, जो कैंसर या पोलिप्स (Polyps) का संकेत हो सकता है।

⦿ कैसे काम करता है: आप घर पर एक छोटा मल नमूना (Sample) एकत्र करते हैं और इसे जांच के लिए प्रयोगशाला (Laboratory) में भेजते हैं।

⦿ अगर खून पाया जाता है, तो आगे के परीक्षण जैसे कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) की आवश्यकता हो सकती है। यह परीक्षण गैर-आक्रामक (Non-Invasive) है और इसे प्रभावी स्क्रीनिंग के लिए हर साल करना आवश्यक है।

कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy)

⦿ कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए कोलोनोस्कोपी को सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि यह डॉक्टर को पूरे कोलन (Colon) और मलाशय (Rectum) की जांच करने की अनुमति देता है।

⦿ इस प्रक्रिया के दौरान, एक लचीली ट्यूब (Flexible Tube) के साथ एक कैमरा (Camera) मलाशय में डाला जाता है, जिससे डॉक्टर असामान्यताओं (Abnormalities) को देखने और पोलिप्स को हटाने का काम कर सकते हैं।

⦿ अगर कोई समस्या नहीं पाई जाती है, तो यह परीक्षण आमतौर पर हर 10 साल में किया जाता है।

फ्लेक्सिबल सिग्मोइडोस्कोपी (Flexible Sigmoidoscopy)

⦿ यह परीक्षण कोलोनोस्कोपी के समान है, लेकिन इसमें केवल कोलन और मलाशय के निचले हिस्से (Lower Part of Colon and Rectum) की जांच की जाती है।

⦿ एक लचीली ट्यूब के साथ एक कैमरा डाला जाता है ताकि कोलन के निचले हिस्से में पोलिप्स या कैंसर की जांच की जा सके।

⦿ यह कोलोनोस्कोपी की तुलना में कम आक्रामक (Less Invasive) होता है और इसे हर 5 साल में किया जा सकता है।

सीटी कोलोनोग्राफी (वर्चुअल कोलोनोस्कोपी - CT Colonography or Virtual Colonoscopy)

⦿ एक सीटी कोलोनोग्राफी (CT Colonography) एक्स-रे (X-Ray) और कंप्यूटर तकनीक (Computer Technology) का उपयोग करके कोलन और मलाशय की विस्तृत छवियाँ (Detailed Images) बनाती है।

⦿ यह गैर-आक्रामक परीक्षण को “वर्चुअल” कोलोनोस्कोपी के रूप में भी जाना जाता है, और यह पोलिप्स और अन्य असामान्यताओं का पता लगा सकता है।

⦿ हालांकि यह पारंपरिक कोलोनोस्कोपी की तुलना में कम आक्रामक है, इसमें अभी भी आंत्र की तैयारी (Bowel Preparation) की आवश्यकता होती है, और किसी भी पोलिप्स को हटाने के लिए पारंपरिक कोलोनोस्कोपी की आवश्यकता होगी।

डीएनए स्टूल टेस्ट (DNA Stool Test)

⦿ यह एक उभरती हुई तकनीक (Emerging Technology) है जो मल के नमूनों में असामान्य डीएनए (Abnormal DNA) की जांच करती है, जो कैंसर या पोलिप्स से संबंधित हो सकता है।

⦿ यह परीक्षण मल में खून का भी पता लगा सकता है और आमतौर पर हर 3 साल में करने की सिफारिश की जाती है।

⦿ यह घर पर करने के लिए सुविधाजनक है, लेकिन अगर असामान्य परिणाम (Abnormal Results) मिलते हैं, तो फॉलो-अप कोलोनोस्कोपी की आवश्यकता होगी।

कोलोरेक्टल कैंसर का जल्दी पता लगाने के लिए कई स्क्रीनिंग विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना तरीका और लाभ है। नीचे दी गई तालिका विभिन्न स्क्रीनिंग परीक्षणों, वे कैसे काम करते हैं, और उनकी अनुशंसित आवृत्ति को उजागर करती है:
स्क्रीनिंग परीक्षण यह कैसे काम करता है आवृत्ति लाभ
फिकल ऑक्लट ब्लड टेस्ट (एफओबीटी) मल में छिपे हुए रक्त को पता लगाता है सालाना गैर-आक्रामक, घर पर किया जा सकता है
कोलोनोस्कोपी पूरे कॉलन की जांच करता है, पॉलीप्स को हटा सकता है हर 10 साल में व्यापक, पॉलीप्स हटाने में सक्षम
फ्लेक्सिबल सिग्मोइडोस्कोपी कोलन के निचले हिस्से की जांच करता है हर 5 साल में कम आक्रामक, जल्दी रिकवरी
सीटी कोलोनोग्राफी एक्स-रे और कंप्यूटर तकनीक का उपयोग कर कोलन की विस्तृत छवि बनाता है हर 5 साल में गैर-आक्रामक, पॉलीप्स का पता लगाता है
डीएनए स्क्रिनिंग टेस्ट मल के नमूने और असामान्य डीएनए का पता लगाता है हर 3 साल में गैर-आक्रामक, घर पर करने में आसान

सकारात्मक परीक्षण के बाद

स्क्रीनिंग परीक्षण से सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद के अगले कदम

⦿ कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग (Colorectal Cancer Screening) में सकारात्मक परिणाम (Positive Result) का मतलब है कि आपके मल (Stool) में खून (Blood) या पोलिप्स (Polyps) जैसी कोई असामान्य चीज़ (Abnormality) पाई गई है।

⦿ यह समझना महत्वपूर्ण है कि सकारात्मक परीक्षण (Positive Test) का मतलब हमेशा कैंसर नहीं होता है।

⦿ अगला कदम आमतौर पर एक विस्तृत जांच (Further Examination), जैसे कि कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy), होता है, ताकि असामान्य परिणाम का कारण (Reason for Abnormal Result) पता लगाया जा सके।

कोलोनोस्कोपी जैसे फॉलो-अप परीक्षण का महत्व

⦿ कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy), सकारात्मक स्क्रीनिंग (Positive Screening) के बाद सबसे सटीक फॉलो-अप परीक्षण (Accurate Follow-Up Test) है।

⦿ यह डॉक्टर को पूरे कोलन (Colon) की जांच करने और संदिग्ध पोलिप्स (Suspicious Polyps) को हटाने की अनुमति देता है।

⦿ यह परीक्षण यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि परिणाम कैंसर (Cancer), पोलिप्स, या अन्य कारणों (Other Causes) से था।

यह समझना कि सभी सकारात्मक परिणाम कैंसर नहीं दर्शाते

⦿ कई मामलों में, स्क्रीनिंग (Screening) में सकारात्मक परिणाम (Positive Result) मिलने के बावजूद, कैंसर (Cancer) नहीं पाया जाता है।

⦿ अक्सर, यह गैर-कैंसरयुक्त पोलिप्स (Non-Cancerous Polyps) होते हैं जिन्हें आसानी से हटाया जा सकता है।

⦿ पोलिप्स सामान्य (Common) होते हैं, और सभी कैंसर में नहीं बदलते।

कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव के उपाय

उच्च फाइबर आहार का महत्व

⦿ फाइबर युक्त आहार (Fiber-Rich Diet), जैसे फल (Fruits), सब्जियां (Vegetables), साबुत अनाज (Whole Grains), पाचन तंत्र (Digestive System) को स्वस्थ रखता है।

⦿ यह नियमित मल त्याग (Regular Bowel Movements) को बढ़ावा देता है और कोलन (Colon) को सुरक्षा प्रदान करता है।

शारीरिक रूप से सक्रिय रहना

⦿ नियमित व्यायाम (Regular Exercise) पाचन में सुधार (Improves Digestion) करता है और स्वस्थ वजन (Healthy Weight) बनाए रखता है।

⦿ सप्ताह में 30 मिनट का व्यायाम कैंसर के जोखिम (Cancer Risk) को कम करता है।

धूम्रपान से बचना और शराब का सेवन सीमित करना

⦿ धूम्रपान (Smoking) और अत्यधिक शराब का सेवन (Excessive Alcohol Consumption) कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को बढ़ाता है।

⦿ धूम्रपान छोड़ने (Quitting Smoking) और शराब का सेवन सीमित करने (Limiting Alcohol Intake) से कैंसर का खतरा कम होता है।

नियमित स्वास्थ्य जांच और स्क्रीनिंग

⦿ नियमित जांच (Regular Check-Ups) से डॉक्टर आपके जोखिम कारकों (Risk Factors) का आकलन कर सकते हैं।

⦿ कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) जैसी स्क्रीनिंग (Screening) कैंसर का पता लगाने और रोकने में सहायक (Helpful) होती है।

स्क्रीनिंग मिथक और चुनौतियाँ

स्क्रीनिंग प्रक्रिया के बारे में आम डर

⦿ कई लोग स्क्रीनिंग (Screening), खासकर कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) को लेकर असुविधा (Discomfort) या शर्मिंदगी (Embarrassment) महसूस करते हैं।

⦿ एफओबीटी (FOBT) जैसे परीक्षण गैर-आक्रामक (Non-Invasive) और दर्द रहित (Painless) होते हैं।

⦿ कोलोनोस्कोपी भी संज्ञाहरण (Anesthesia) के तहत की जाती है, जिससे प्रक्रिया आरामदायक (Comfortable) होती है।

मिथक जैसे 'केवल वृद्ध लोगों को स्क्रीनिंग की आवश्यकता है'

⦿ एक मिथक (Myth) है कि केवल बुजुर्गों (Elderly) को स्क्रीनिंग की ज़रूरत होती है।

⦿ सच यह है कि 45 साल से अधिक उम्र वाले और परिवार में कैंसर का इतिहास (Family History of Cancer) रखने वाले लोगों को स्क्रीनिंग की ज़रूरत होती है।

⦿ लक्षण (Symptoms) न होने के बावजूद कैंसर हो सकता है, इसलिए नियमित स्क्रीनिंग (Regular Screening) आवश्यक है।

लोगों को इन बाधाओं को दूर करने के लिए प्रोत्साहित करना

⦿ लोगों को स्क्रीनिंग के लाभ (Benefits) और सुरक्षा (Safety) के बारे में जागरूक (Awareness) करना ज़रूरी है।

⦿ स्क्रीनिंग कैंसर के शुरुआती निदान (Early Detection) और रोकथाम (Prevention) में सहायक है, जिससे जीवन (Life) बचाया जा सकता है।

⦿ सही जानकारी (Accurate Information) और डॉक्टर से चर्चा (Discussion with Doctor) करके लोग अपनी चिंताओं (Concerns) को दूर कर सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों

कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग क्या है और यह क्यों जरूरी है?
कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग (Colorectal Cancer Screening) का मतलब है, कोलन (Colon) और मलाशय (Rectum) में कैंसर या कैंसर बनने वाले पोलिप्स (Polyps) का पता लगाना, वह भी लक्षण (Symptoms) आने से पहले। शुरुआती पहचान (Early Detection) से कैंसर को बढ़ने से रोका जा सकता है या उसका जल्दी इलाज (Treatment) किया जा सकता है, जिससे बचने की संभावना (Survival Chances) बढ़ जाती है।
कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग कब शुरू करनी चाहिए?
ज्यादातर लोगों को 45 साल की उम्र से स्क्रीनिंग शुरू करनी चाहिए, क्योंकि इस उम्र के बाद कैंसर का खतरा (Risk) बढ़ जाता है। अगर आपके परिवार में कैंसर का इतिहास (Family History) है या आपके अन्य जोखिम कारक (Risk Factors) हैं, तो आपको पहले से स्क्रीनिंग की जरूरत हो सकती है। सही समय जानने के लिए डॉक्टर से सलाह (Consultation) लें।
कोलोरेक्टल कैंसर के लिए सबसे आम स्क्रीनिंग परीक्षण कौन से हैं?
सबसे आम स्क्रीनिंग परीक्षणों (Common Screening Tests) में फीकल ओकल्ट ब्लड टेस्ट (FOBT - Fecal Occult Blood Test), कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) और फ्लेक्सिबल सिग्मोइडोस्कोपी (Flexible Sigmoidoscopy) शामिल हैं। कोलोनोस्कोपी सबसे व्यापक (Comprehensive) है, क्योंकि इससे डॉक्टर पूरे कोलन की जांच कर सकते हैं और प्रक्रिया के दौरान पोलिप्स को हटा सकते हैं।
कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग कितनी बार करानी चाहिए?
स्क्रीनिंग की आवृत्ति (Frequency) इस्तेमाल किए गए परीक्षण (Test) पर निर्भर करती है। कोलोनोस्कोपी के लिए, अगर परिणाम सामान्य (Normal Results) होते हैं, तो हर 10 साल में एक बार करना चाहिए। अन्य परीक्षण जैसे कि FOBT को हर साल या हर कुछ साल में कराना पड़ सकता है। आपके स्वास्थ्य (Health) के आधार पर डॉक्टर आपको सही समय (Appropriate Timing) बताएंगे।
क्या कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग दर्दनाक होती है?
अधिकांश स्क्रीनिंग परीक्षण (Most Screening Tests) जैसे कि FOBT (Fecal Occult Blood Test) गैर-आक्रामक (Non-Invasive) और बिना दर्द वाले (Painless) होते हैं। कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) संज्ञाहरण (Anesthesia) के तहत की जाती है, इसलिए प्रक्रिया (Procedure) के दौरान कोई दर्द महसूस नहीं होता। प्रक्रिया के बाद हल्की असुविधा (Mild Discomfort) हो सकती है, लेकिन यह जल्दी ठीक हो जाती है।
कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण क्या हैं?
कोलोरेक्टल कैंसर के शुरुआती चरणों (Early Stages) में अक्सर कोई लक्षण (Symptoms) नहीं होते, इसलिए स्क्रीनिंग (Screening) जरूरी होती है। हालांकि, कैंसर के उन्नत मामलों (Advanced Cases) में मल में खून आना (Blood in Stool), बिना वजह वजन घटना (Unexplained Weight Loss), और मल त्याग की आदतों में लगातार बदलाव (Changes in Bowel Habits) जैसे लक्षण हो सकते हैं।
अगर मेरी स्क्रीनिंग का परिणाम सकारात्मक आता है तो क्या होगा?
सकारात्मक परिणाम (Positive Result) का मतलब है कि कुछ असामान्य (Abnormal) पाया गया है, जैसे कि मल में खून या कोलन में पोलिप्स (Polyps in Colon)। डॉक्टर आमतौर पर आगे की जांच (Further Investigation), जैसे कि कोलोनोस्कोपी की सलाह देंगे, ताकि यह तय किया जा सके कि कैंसर (Cancer) है या कोई और स्थिति (Other Condition)।
क्या मैं कोलोरेक्टल कैंसर से बच सकता हूं?
हालांकि हर मामले को रोका नहीं जा सकता, लेकिन एक स्वस्थ जीवनशैली (Healthy Lifestyle) अपनाकर, जैसे कि उच्च फाइबर वाला आहार (High-Fiber Diet) लेना, नियमित व्यायाम (Regular Exercise) करना, धूम्रपान से बचना (Avoiding Smoking), और शराब का सेवन कम करके (Limiting Alcohol Intake), आप अपने जोखिम (Risk) को कम कर सकते हैं। नियमित स्क्रीनिंग भी जरूरी है, क्योंकि यह कैंसर का शुरुआती पता लगाने (Early Detection) और पोलिप्स को हटाकर इसे रोकने (Prevention) में मदद करती है।
कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम कारक क्या हैं?
जोखिम कारकों (Risk Factors) में 45 साल से अधिक उम्र (Age Above 45) होना, परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर (Family History of Colorectal Cancer) या पोलिप्स (Polyps) का इतिहास होना, कुछ आनुवांशिक स्थितियां (Genetic Conditions), इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज़ (Inflammatory Bowel Disease - IBD), मोटापा (Obesity), धूम्रपान (Smoking), और रेड या प्रोसेस्ड मांस से भरपूर आहार (Diet Rich in Red or Processed Meat) शामिल हैं।
क्या मुझे स्क्रीनिंग की जरूरत है अगर कोई लक्षण नहीं हैं?
हां, स्क्रीनिंग (Screening) लक्षण न होने पर भी जरूरी है। कोलोरेक्टल कैंसर अक्सर तब तक कोई लक्षण (Symptoms) नहीं दिखाता जब तक कि यह उन्नत (Advanced) न हो जाए। नियमित स्क्रीनिंग से कैंसर का शुरुआती पता (Early Detection) लगाया जा सकता है या पोलिप्स का पता लगाकर उन्हें कैंसर बनने से पहले हटा दिया जा सकता है, जिससे इलाज (Treatment) आसान हो जाता है और बचने की संभावना (Survival Chances) बढ़ जाती है।
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डॉ हर्ष शाह

MS, MCh (G I cancer Surgeon)

डॉ. हर्ष शाह अहमदाबाद के एक प्रसिद्ध जीआई और एचपीबी रोबोटिक कैंसर सर्जन हैं। वे भोजन नली, पेट, लीवर, पैंक्रियास, बड़ी आंत, मलाशय और छोटी आंत के कैंसर का इलाज करते हैं। वे अपोलो अस्पताल में उपलब्ध हैं।

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Dr. Harsh J Shah

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